
उत्तराखंड की पहली नर्सरी में दो शावकों को मिला जीवनदान
मां से जुदा हुए गुलदार के बच्चों के लिए लैपर्ड नर्सरी बनी जीवन दायनी
हरिद्वार। चिड़ियापुर रेस्क्यू में बनाई गई राज्य की पहली लैपर्ड बेबी केयर नर्सरी मां से अलग हुए गुलदार बच्चो के लिए वरदान बनी है।नर्सरी में दो बच्चों को जीवनदान मिला है। इससे पहले जितने भी शावक मिलते थे, नर्सरी न होने के कारण जीवित नहीं रह पाते थे।
चिड़ियापुर रेस्क्यू सेंटर में रेस्क्यू किए गए जंगली जानवरों को लाया जाता है। लेकिन प्रदेश में कहीं भी मां से बिछड़े गुलदार के शावकों को रखने के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं थी। इन कारणों से जन्म के कुछ ही दिन बाद मां से बिछड़े बच्चों की देखभाल नहीं हो पाती है। इसी कारण से उनकी मौत हो
जाती थी। कई वर्षो में अब तक सेंटर में लाए गए गुलदार के बच्चो में से एक भी नहीं बच पाया था। इसके मद्देनजर सेंटर में बीते साल अप्रैल से गुलदार के नन्हें बच्चों को नया जीवन देने के लिए लैपर्ड बेबी केयर नर्सरी बनाई गई।
नर्सरी में नरेंद्र नगर वन प्रभाग से लाया गया 15 दिन का गुलदार का शावक अब करीब छह का माह चुका है। वहीं,आठ नवंबर को हरिद्वार वन प्रभाग की श्यामपुर रेंज से दो माह की उम्र में लाया गया बच्चे भी चार माह से ऊपर का हो चुका है। नर्सरी में शावकों को मां की कमी महसूस नहीं होती है। शावकों की देखरेख में उन्हें वह जरूरी सुविधाएं दी जा रही है। दूध व आहार दिया जाता है। जो उनकी परवरिश के लिए जरूरी होता है। नन्हें शावकों को जीवन मिलने के साथ ही भविष्य में भी नर्सरी मां से बिछड़े गुलदार के बच्चों के लिए मिल वरदान साबित होगी।

गुलदार शावकों को तहसीन, रुखसाना के नाम से जाना पहचाना जाता है वन कर्मी एवं चिकित्सक भी इसी नाम से दोनों बच्चों को पुकारते हैं जिसमें नर शावक को तहसीन व मादा शावक को रुखसाना के नाम से जाना जाता है।शावक वन कर्मियों के साथ ऐसे रहतेहैं। वह जैसे उनके बहुत घनिष्ठ मित्र हों। जिससे वह सेंटर के डॉक्टरों और कर्मचारियों के दोस्त बनकर रहते हैं।
डा. अमित ध्यानी और डा. प्रेमा ध्यानी के दिशा-निर्देश पर गुलदार के शावकों को बचाया गया है।
अब इन्हें देहरादून के जू घर या फिर अन्य स्थानपर शिफ्ट करने के लिए वाइल्ड लाइप चीफ को पत्र भेजा गया है। उनकी अनुमति मिलने पर शावकों को सेंटर से शिफ्ट कर दिया जाएगा।