
आजादी के अमृत महोत्सव को लेकर जहां देश में राष्ट्र निर्माण के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं वही देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों के गांवों खासकर सीमांत गांवों में रह रही लड़कियों के शैक्षिक और सामाजिक उत्थान के लिए परमार्थ निकेतन ऋषिकेश ने एक नया अभिनव प्रयोग शुरू करने जा रहा है जिसको लेकर अभी से पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बाग खासी दिलचस्पी दिखा रहे हैं और इस अभियान से महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कार्य होने जा रहा है साथ ही पर्यावरण संरक्षण के लिए एक नई पहल शुरू होने जा रही है परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद मुनि महाराज और उनकी शिष्या अमेरिका मूल की साध्वी भगवती की इस अनोखी पहल को अभी से बेहद सफलता मिलती हुई दिखाई दे रही है अपने धार्मिक कर्तव्यों के साथ साथ स्वामी जी और साध्वी जी अपने सामाजिक सरोकारों को भी बखूबी निभा रहे हैं स्वामी चिदानंद मुनि कहते हैं कि धर्म का असली मतलब अपने धर्म का पालन करना और दूसरे के धर्म का सम्मान करना है ,साथ ही समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना करना, जीवन में सद्गुणों का विकास करना तथा ईमानदारी से अपने सामाजिक दायित्वों को निभाना है धर्म का असली मकसद धर्म और सामाजिक दायित्वों को लेकर नए-नए प्रयोग करना, समाज के हित में काम करना और भीतर का परिष्कार करना तथा समाज के हित के लिए नए अविष्कार करना है जिससे धर्म में निरंतरता बनी रहती है और धर्म समाज के कल्याण के लिए है स्वामी जी कहते हैं कि समाज का मूल आधार हमारी बेटियां हैं और हमारे धार्मिक ग्रंथों में नारी को देवताओं से ऊपर स्थान दिया गया है हमारे धार्मिक ग्रंथ कहते हैं कि जहां नारी की पूजा होती है वहां पर देवता निवास करते हैं
“शिक्षा से शादी तक”
परमार्थ निकेतन ऋषिकेश देवभूमि उत्तराखंड में नारी सशक्तिकरण के लिए बेटियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक उत्थान के लिए एक नया अभियान चलाने जा रहा है- “शिक्षा से शादी तक”, इस अभियान का मकसद बेटियों को आर्थिक, सामाजिक,मानसिक और शैक्षिक रूप से स्वावलंबी बनाना है साथ ही इस अभियान से महिला सशक्तिकरण के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण के कार्य को भी मूर्त रूप देना है परमार्थ निकेतन बेटियों के जन्मदिन पर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में “पेड़ लगेंगे बेटी के नाम” से एक अभिनव प्रयोग करने जा रहा है विभिन्न गांवों में बेटियों के जन्मदिन पर उनके नाम पर अलग-अलग फलदार किस्म के पौधे लगाए जाएंगे और जब यह पौधे वृक्ष का रूप लेगें तो यह वृक्ष फल देने के साथ-साथ पर्यावरण को और अधिक स्वच्छ बनाएंगे और हमारे स्वस्थ जीवन के लिए हमें शुद्ध हवा भी मिलती रहेगी और सघन वृक्षारोपण अभियान भी सफल होगा ,परमार्थ निकेतन ऋषिकेश ने इस नए अभिनव प्रयोग के तहत उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों खासकर सीमांत क्षेत्रों में बेटियों के जन्म लेने पर पूरा गांव जन्मोत्सव का आयोजन करें, ऐसी योजना बनाई है ताकि बेटी के जन्म लेने पर गांव में खुशियां मनाई जाए, साथ ही परमार्थ निकेतन के सौजन्य से इन बेटियों के जन्मदिन के दिन पांच-पांच पौधे अखरोट, सेव,कीवी, चंदन तथा अन्य प्रजातियों के लगाए जाएंगे जब बेटियां 5 से 6 साल की हो जाएंगी तो यह फलदार वृक्ष फल देने लगेंगे और इन वृक्षों के फलों से होने वाली आमदनी इन बेटियों की पढ़ाई लिखाई और रहन-सहन में खर्च की जाएगी स्वामी जी कहते हैं कि इन फलदार वृक्षों के पीछे बेटियों की आर्थिकी भी जुड़ी है उदाहरण के तौर पर वे बताते हैं कि 15 से लेकर 20 साल में चंदन का पेड़ इतना बड़ा हो जाएगा कि उसकी कीमत बाजार में 15 से 20 लाख तक हो जाएगी जब बिटिया की शादी का समय आएगा तब 5 चंदन के पेड़ों की कीमत एक से सवा करोड़ रुपए के लगभग हो जाएगी जिससे बिटिया के परिवार का आर्थिक अभ्युदय भी होगा स्वामी जी कहते हैं कि ‘शिक्षा से शादी तक’ अभियान के तहत हमने नारा दिया है-‘पेड़ लगेंगे, बेटी के नाम’, इस अभियान के तहत परमार्थ निकेतन ने सबसे पहले उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल के सीमांत जिले उत्तरकाशी को चयनित किया है इसके बाद यह अभियान उत्तराखंड के अन्य सीमांत जिलों चमोली, पिथौरागढ़, चंपावत होते हुए पूरे पर्वतीय क्षेत्र मे जन-आंदोलन का रुप लेगा स्वामी जी कहते हैं कि हमारा असल उद्देश्य इस अभियान के पीछे बाल विवाह को रोकना है क्योंकि समाज में बाल विवाह महिलाओं और बालिकाओं के प्रति सामाजिक भेदभाव को और अधिक बढ़ाता है और महिलाओं के सामाजिक और आर्थिक विकास में सबसे बड़ी बाधा है संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के आकलन के अनुसार भारत में हर साल 18 साल से कम उम्र की लगभग 15 लाख बालिकाओं की शादी की जाती है स्वामी जी कहते हैं कि हमें पूरी उम्मीद है कि ‘शिक्षा से शादी तक’ का हमारा अभियान बाल विवाह रोकने के साथ-साथ महिलाओं के आर्थिक और सामाजिक अभुदय के लिए सबसे सशक्त माध्यम बनेगा क्योंकि बेटियों को शिक्षा और शादी को लेकर अनेक सामाजिक और आर्थिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है और जो लड़कियों में असमानता का भाव पैदा करता है
“गंगा ने साध्वी भगवती के जीवन में किया अद्भुत परिवर्तन”
स्वामी जी कहते हैं कि महिला सशक्तिकरण के इस अभिनव प्रयोग में साध्वी भगवती समर्पित भाव से जुटी हुई है साध्वी भगवती को लेकर स्वामी जी बताते हैं कि वे 1996 में अमेरिका की एक विश्वविख्यात स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर की उपाधि लेने के बाद वे पीएचडी कर रही थी इसी दौरान वे भारत भ्रमण के लिए आई और ऋषिकेश में गंगा तट पर स्थित परमार्थ निकेतन की हर संध्याकाल में नियमित होने वाली गंगा आरती में पहुंची और गंगा दर्शन और गंगा आरती ने तो साध्वी भगवती के जीवन में अद्भुत परिवर्तन ला दिया और वे गंगा और भारत की ही होकर रह गई साध्वी जी कहती हैं कि अब मेरा जीवन सनातन धर्म और भारतीयता के रंग में हुआ हुआ है और मैं भारत में नहीं बल्कि अब भारत मुझ में रहता है ,इस तरह साध्वी भगवती का मनन-चिंतन-ध्यान और अंतर्मन गंगा और भारत से जुड़ा हैं भारत और गंगा ही उनका जीवन है और उनका लक्ष्य, भगवे रंग की साड़ी- ब्लाउज पहनना, हाथ जोड़कर मृदुवाणी में एक सनातनी महिला की तरह अभिवादन करना , यह सब आज साध्वी भगवती की पहचान बन गई है स्वामी जी बताते हैं कि साध्वी भगवती को साल 2000 में परमार्थ निकेतन ऋषिकेश में गंगा के तट पर उन्होंने संन्यास दीक्षा दी थी और तब से उनका नाम साध्वी भगवती हो गया और वे अपने संन्यास जीवन के सभी कर्तव्यों को समर्पित एवं श्रद्धा भाव से निभाती चली आ रही है
“80 सालों से धर्म और जनसेवा में जुटा है परमार्थ निकेतन”
“परमार्थ निकेतन के विभिन्न सेवा कार्य”
परमार्थ निकेतन दिव्यांग सेवा शिविर, निशुल्क चिकित्सा शिविर,नारी संसद ,लोक संसद,गंगा स्वच्छता अभियान,पर्यावरण संरक्षण अभियान,वृक्षारोपण अभियान जैसे सामाजिक कार्य कई वर्षों से निरंतर चलाता आ रहा है परमार्थ निकेतन ने दिव्यांग मुक्त उत्तराखंड यात्रा को एक उड़ान दी है और यह यात्रा उत्तराखंड से देश के विभिन्न राज्यों से होते हुए पूरे भारत में जाएगी स्वामी जी बताते हैं कि भारत में 45 फीसद लोग निरक्षर हैं और 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 2.68 करोड़ दिव्यांग आबादी है जो देश की पूरी आबादी का 2.21 फीसद है जिसमें 1.5 करोड़ पुरुष तथा 1.8 करोड़ महिला दिव्यांग आबादी है और हमारा संकल्प दिव्यांग मुक्त भारत बनाना है और इसी अभियान के तहत परमार्थ निकेतन में इस साल 19 सितंबर से 11 अक्टूबर तक निशुल्क दिव्यांग सेवा शिविर लगाया गया था स्वामी जी बताते हैं कि परमार्थ निकेतन बालिका शिक्षा को बढ़ावा देना, बाल विवाह की कुप्रथा को समाप्त करना, लड़कियों के लिए स्कूल में शौचालयों का निर्माण करना और उनको अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करना साथ ही उन्हें माहवारी के प्रति सही जानकारी देना जैसी कई सामाजिक कार्यकर्ता है स्वामी जी कहते हैं कि अक्सर देखने में आया है कि कई स्कूलों में शौचालयों का भाव है जिसके कारण लड़कियां माहवारी का समय आते आते स्कूल छोड़ देती हैं क्योंकि कई पिछड़े और ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता को माहवारी को लेकर सही जानकारी का अभाव होता है जिसके कारण से महावारी के आते ही कम उम्र में ही बेटियों की शादी का देते हैं जिसके कारण वे शिक्षा से वंचित हो जाती है इसलिए परमार्थ निकेतन ने इस विषय को राष्ट्रव्यापी अभियान के तौर पर लिया है, परमार्थ निकेतन ग्लोबल इंटरफेथ एलायंस के माध्यम से न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी संतो को एक मंच प्रदान करता है ताकि सभी धर्माचार्य और उनके अनुयाई सामाजिक परंपराओं पर एक सकारात्मक चर्चा कर सकें और धर्म विश्व शांति का सबसे सबल माध्यम बन सके, क्योंकि दुनिया की 85 फीसद आबादी धर्म गुरुओं और धर्म आधारित संगठनों पर आस्था और विश्वास रखती है इसके साथ-साथ परमार्थ निकेतन सोशल मीडिया के माध्यम से धार्मिक कथाओं धार्मिक और राष्ट्रीय पर्वो त्योहारों तथा अन्य आयोजनों के माध्यम से विश्व स्तर पर धार्मिक सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्वों बखूबी निभा रहा है
“अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को दी नई पहचान”
परमार्थ निकेतन ऋषिकेश ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस को एक नई पहचान दी है, परमार्थ निकेतन को विश्व पटल पर एक विशिष्ट पहचान दिलाने में साध्वी भगवती की भी विशेष भूमिका रही है स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि कहते हैं कि पिछले 39 सालों से परमार्थ निकेतन योग महोत्सव को मनाता चला रहा है जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतरराष्ट्रीय योग दिवस की शुरुआत करने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तो वही प्रधानमंत्री के इस अभियान को सफल बनाने के लिए परमार्थ निकेतन ने भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ दिया वैसे 1997 से परमार्थ निकेतन ऋषिकेश के गंगा के पावन तट पर 1 से 7 मार्च तक अंतरराष्ट्रीय योग सप्ताह महोत्सव मनाता चला आ रहा है और ऋषिकेश को अंतरराष्ट्रीय योग नगरी के रूप में विशिष्ट पहचान देने में स्वामी चिदानंद सरस्वती मुनि और साध्वी भगवती का अतुलनीय योगदान है इस अंतरराष्ट्रीय योग सप्ताह महोत्सव में 100 से ऊपर देशों के लोग भाग लेते हैं जिनमें अमेरिका, इंग्लैंड, जर्मनी, कनाडा ,दक्षिण अफ्रीका, इटली ,चीन, जापान ,रूस तथा अन्य देशों के योगाचार्यों के साथ-साथ विभिन्न धर्मों के धर्मगुरु भी अपने अनुयायियों के साथ भाग लेते हैं और अब यह अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव एक तरह से विश्व के विभिन्न धर्माचार्यों के लिए विश्व में अपनी आवाज पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम बन गया है इस अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव की तैयारी के लिए साध्वी भगवती कई महीनों पहले विभिन्न देशों की यात्रा पर निकल जाती हैं और विश्व के विभिन्न धर्माचार्यों से इस महोत्सव को लेकर विचार-विमर्श और चिंतन-मनन करती हैं स्वामी जी बताते हैं कि कोरोना के 2 साल में ऑनलाइन अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव का आयोजन किया गया अब अगले साल 2023 में 8 से 14 मार्च तक फिर से विश्व के विभिन्न धर्माचार्य अंतरराष्ट्रीय योग महोत्सव में परमार्थ निकेतन के गंगा तट पर एक साथ एक मंच पर जुटेंंगें और विश्व को स्वस्थ मन, स्वस्थ विचार ,स्वस्थ आहार, स्वस्थ देह का संदेश देंगे